अयं पाठः सुप्रसिद्धस्य ग्रन्थस्य महाभारतस्य उद्योगपर्वणः अंशविशेष (अध्यायाः 33-40) रूपायाः विदुरनीतेः संकलितः। युद्धम् आसन्नं प्राप्य धृतराष्ट्रो मन्त्रिप्रवरं विदुरं स्वचित्तस्य शान्तये कांश्चित् प्रश्नान् नीतिविषयकान् पृच्छति। तेषां समुचितमुत्तरं विदुरो ददाति। तदेव प्रश्नोत्तररूपं ग्रन्थरत्नं विदुरनीतिः। इयमपि भगवद्गीतेव महाभारतस्यङ्गमपि स्वतन्त्रग्रन्थरूपा वर्तते।

अर्थ –  यह पाठ सुप्रसिद्ध ग्रन्थ महाभारत के उद्योगपर्व के अंश विशेष (अध्याय 33-40) रूप में विदुरनीति से संकलित है। युद्ध निकट पाकर धृतराष्ट्र ने मंत्री श्रेष्ठ विदुर को अपने चित की शन्ति के लिए कुछ प्रश्न पुछे।

पूछे गये प्रश्नों का उत्तर विदुरनीति देते हैं। वहीं प्रश्नोत्तर रूप ग्रन्थरत्न विदुरनीति है। यह भी भगवद् गीता की तरह महाभारत का अंग स्वतंत्र ग्रन्थ रूप में है।

 

यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रतिः।

समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते।। 1।।

अर्थ – जिसके कर्म को शर्दी, गर्मी, भय, भावुकता, समपन्नता अथवा विपन्नता बाधा नहीं डालता है, उसे ही पंडित कहा गया है।

 

तत्वज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञः सर्वकर्मणाम् ।

उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते ।। 2।।

अर्थ – सभी जीवों के आत्मा के रहस्य को जानने वाले, सभी कर्म के योग को जानने वाले और मनुष्यों में उपाय जानने वाले व्यक्ति को पंडित कहा जाता है।

 

अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहुभाषते ।

अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः ।। 3।।

अर्थ – जो व्यक्ति बिना बुलाए किसी के यहाँ जाता है, बिना पूछे बोलता है और अविश्वासीयों पर विश्वास कर लेता है, उसे मुर्ख कहा गया है।

 

एको धर्मः परं श्रेयः क्षमैका शान्तिरुत्तमा।

विद्यैका परमा तृप्तिः अहिंसैका सुखावहा ।। 4।।

अर्थ – एक ही धर्म सबसे श्रेष्ठ है। क्षमा शांति का उतम उपाय है। विद्या से संतुष्टि प्राप्त होती है और अहिंसा से सुख प्राप्त होती है।

 

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।

कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत् त्रयं त्यजेत् ।। 5 ।।

अर्थ – नरक के तीन द्वार है- काम, क्रोध और लोभ। इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए।

 

षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता ।

निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता ।। 6 ।।

अर्थ – एश्वर्य चाहने वाले व्यक्ति को निद्रा ;अधिक सोनाद्धए तन्द्रा ;उंघनाद्धए डर, क्रोध, आलस्य और किसी काम को देर तक करना। इन छः दोषों को त्याग देना चाहिए।

 

सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते ।

मृजया रक्ष्यते रूपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते ।। 7।।

अर्थ – सत्य से धर्म की रक्षा होती है। अभ्यास से विद्या की रक्षा होती है। श्रृंगार से रूप की रक्षा होती है। अच्छे आचरण से कुल ;परिवारद्ध की रक्षा होती है।

 

सुलभाः पुरुषा राजन् सततं प्रियवादिनः ।

अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ।। 8।।

हे राजन! सदैव प्रिय बोलने वाले और सुनने वाले पुरूष आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन अप्रिय ही सही उचित बोलने वाले कठिन है।

 

पूजनीया महाभागाः पुण्याश्च गृहदीप्तयः ।

स्त्रियः श्रियो गृहस्योक्तास्तस्माद्रक्ष्या विशेषतः ।। 9।।

अर्थ – स्त्रियाँ घर की लक्ष्मी होती हैं। इन्ही से परिवार की प्रतिष्ठा बढ़ती है। यह महापुरूषों को जन्म देनेवाली होती है। इसलिए स्त्रियाँ विशेष रूप से रक्षा करने योग्य होती है।

 

अकीर्तिं विनयो हन्ति हन्त्यनर्थं पराक्रमः ।

हन्ति नित्यं क्षमा क्रोधमाचारो हन्त्यलक्षणम् ।। 10।।

अर्थ – विनम्रता बदनामी को दुर करती है, पौरूष या पराक्रम अनर्थ को दुर करता है, क्षमा क्रोध को दुर करता है और अच्छा आचरण बुरी आदतों को दुर करता है।

error: